: पर्यावरण Environment

पर्यावरण Environment

1. पर्यावरण (Environment) पर्यावरण शब्द परि आवरण से मिलकर बना है। परि का अर्थ है चारों ओर और आवरण का अर्थ है घिरा हुआ। अर्थात् पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर से घिरा हुआ। इस प्रकार हम अपने आप जो कुछ भी देखते हैं वही हमारा पर्यावरण है-जैसे नदी पहाड़, तालाब, मैदान, पेड़-पौधे, जीव-जंतु वायु, वन, मिट्टी आदि सभी हमारे पर्यावरण के घटक हैं। मानव के चारों ओर फैले हुए वातावरण को पर्यावरण की परिधि में माना है। मानव जन्म से मृत्युपर्यन्त पर्यावरण में ही रहता है। पर्यावरण से वह आदर्श मानव के रूप में स्वस्थ नागरिक नहीं बन सकता। व्यक्ति को चारों ओर से ढकने वाला आवरण ही पर्यावरण कहलाता है। इसके अभाव में सुखद जीवन ही असम्भव है। हम सभी इन घटकों का दैनिक जीवन में भरपूर उपयोग करते हैं अर्थात् हम इन घटकों पर ही निर्भर हैं। 1. पर्यावरण की परिभाषा जे. एस. रॉस के अनुसार, पर्यावरण या वातावरण वह बाह्य शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।" डगलस एवं हॉलैण्ड के अनुसार, पर्यावरण वह शब्द है जो समस्त बाह्य शक्तियों, प्रभावों और परिस्थितियों का सामूहिक रूप से वर्णन करता है जो जीवधारी के जीवन, स्वभाव, व्यवहार तथा अभिवृद्धि, विकास तथा प्रौढ़ता पर प्रभाव डालता है।" हर्सकोविट्स के अनुसार, "पर्यावरण इन सभी बाहरी दशाओं और प्रभ. वों का योग है तो प्राणी के जीवन तथा विकास पर प्रभाव डालता है।" डॉ. डेविज के अनुसार, 'मनुष्य के सम्बन्ध में पर्यावरण से अभिप्राय भूतल पर मानव के चारों ओर फैले उन सभी भौतिक स्वरूपों से है, जिससे वह निरन्तर प्रभावित होते रहते हैं।" डडले स्टेम्प के अनुसार, पर्यावरण प्रभावों का ऐसा योग है जो किसी जीव के विकास एवं प्रकृति को परिस्थितियों के सम्पूर्ण तथ्य आपसी सामंजस्य से वातावरण बनाते हैं।" ए. बी. सक्सेना के अनुसार, "पर्यावरण शिक्षा वह प्रक्रिया है जो पर्यावरण के बारे में हमें संचेतना, ज्ञान और समझ देती है। इसके बारे में अनुकूल दृष्टिकोण का विकास करती है और इसके संरक्षण तथा सुधार की दिशा में हमें प्रतिबद्ध करती है।" शिक्षाशास्त्री टॉमसन के अनुसार, पर्यावरण ही शिक्षक है शिक्षा का काम छात्र को उसके अनुकूल बनाना है।" विश्व शब्दकोश के अनुसार, "पर्यावरण उन सभी दशाओं, प्रणालियों तथा प्रभावों का योग है जो जीवों व उनकी प्रजातियों के विकास जीवन एवं मृत्यु को प्रभावित करता है।" हर्सकोविट्ज के अनुसार, "जो तथ्य मानव के जीवन और विकास को प्रभावित करते हैं उस सम्पूर्ण तथ्यों का योग पर्यावरण कहलाता है भले ही वे तथ्य सजीव हों अथवा निर्जीव ।" जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग के अनुसार, पर्यावरण जीवों के परिवृत्तीय कारकों का योग है। इसमें जीवन की परिस्थितियों के सम्पूर्ण तथ्य आपसी सामंजस्य से वातावरण बनाते हैं।" एनसाइक्लोपीडिया ऑफ एजूकेशन रिसर्च (मिट्जेल 1682) पर्यावरण के लिए शिक्षा वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पर्यावरण सम्बन्धित असली और मूल मुद्दों की जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि बच्चे इन समस्याओं के प्रति जागरूक बने और उनके संबंध में गहराई से सोच विचार करें और उन्हें हल करने में जायें जुट विश्व के लिए शिक्षा यूनस्को यूरोप के अनुसार, पर्यावरण शिक्षा का विषय क्षेत्र अन्य पाठ्यक्रमों की तुलना में कम परिभाषित है। फिर भी यह सर्वमान्य है कि जैविक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय संसाधनों से सामग्री प्राप्त होती हो। इस शिक्षा के लिए संप्रत्यात्मक विधि सर्वोत्तम है। निकोलर्स के अनुसार, पर्यावरण उन समस्त बाहरी दशाओं तथा प्रभावों का योग है जो प्रत्येक प्राणी के जीवन विकास पर प्रभाव डालते हैं।" सी.सी. पार्क के अनुसार, मनुष्य एक विशेष समय पर जिस सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है उसे पर्यावरण या वातावरण कहा जाता है।" उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि जो कुछ भी हमारे चारों ओर विद्यमान है तथा हमारी रहन-सहन की दशाओं एवं मानसिक क्षमताओं को प्रभावित करता है पर्यावरण कहलाता है। II. पर्यावरण के प्रमुख अंग पर्यावरण के चार प्रमुख अंग है-स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल तथा जैवमण्डल। इन सब का संक्षिप्त वर्णन निम्नवत् है (i) स्थलमण्डल-धरातल के अवतलित क्षेत्र महासागरों द्वारा ढके हैं। जलीय क्षेत्र धरातल के लगभग 71 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है। जल-तल से ऊँचा उठा हुआ भाग स्थलमण्डल है और इसके अन्तर्गत धरातल का लगभग 29 प्रतिशत भाग आता है। इस स्थल में तीन परतें हैं। पहली परत भू-पृष्ठ की है और धरती से इस परत की गहराई 100 किमी. है। इस परत में विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ व शैलें समाई हुई हैं। इस भाग का औसत घनत्व 2.7 है। दूसरी परत को उपाचयमण्डल कहते हैं, जिसकी गहराई स्थल मण्डल के नीचे 200 किमी. तक है तथा जिसमें सिलिकन और मैग्नीशियम की प्रधानता है और इसका औसत घनत्व 3.5 आँका गया है। तीसरी परत को परिणाम मण्डल कहते हैं, जो पृथ्वी का 'केन्द्रीय मण्डल है और कठोर धातुओं से बना हुआ है, जिसमें निकल व लोहे की प्रधानता है तथा इसका औसत घनत्व 39 ओंका गया है। स्थल मण्डल मूलतः मिट्टियों व शैलों से निर्मित है, जिसका विवरण इस प्रकार है मिट्टियाँ- चिकनी मिट्टी, बलुई मिट्टी, दोमट मिट्टी, • शैलें- आग्नेय शैल, अवसादी शैल, कायान्तरित शैल (ii) जलमण्डल - पृथ्वी का समस्त जलीय भाग जलमण्डल कहलाता है, जिसमें सभी सागर व महासागर सम्मिलित हैं। भू-पटल के 71% भाग पर जल एवं 29% भाग पर थल का विस्तार है। पृथ्वी की सतह का क्षेत्रफल लगभगमनुष्य इन घटकों से सम्पर्क रहने के कारण ये मानव स्वास्थ पर सीधा प्रभाव डालते है। सामान्य अवस्था का सामजस्य टूटन पर्यावरण के दुष्प्रभावों से प्रभावित हो जाता है। (ii) जैविक पर्यावरण-सारभौम में जैविक पर्यावरण बहुत बड़ा अवयव है जोकि मानवों के इर्द-गिर्द रहता है । यहाँ तक कि एक मानव के लिए दूसरा मानव भी पर्यावरण का एक भाग है। इसे दो भाग बाँटा गया है *जन्तु समुदाय- इसमें अति सूक्ष्म जीव प्रोटोजोआ के अमीव से लेकर कार्डेटा समूह तक के समस्त जीव आते हैं। वनस्पति समुदाय इसमें अति सूक्ष्म वनस्पतियों, औषधियां से लेकर पृथ्वी पर विद्यमान शिकोना वृक्ष समूह तक के समस्त पेड़-पौधे समाहित हैं। (iii) मनोसामाजिक पर्यावरण- मनोसामाजिक पर्यावरण मानव के सामाजिक संबंधों से प्रकट होता है। इसके अंतर्गत हम सामाजिक आर्थिक, आध्यात्मिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में मानव व्यक्तित्व के विकास का अध्ययन करते हैं। मानव एक सामाजिक प्राणी है उसे समाज में अन्य वर्ग, जाति, पास-पड़ोसी, समुदाय, प्रदेश एवं राष्ट्र से भी संबंध बनाये रखना पड़ता है। मानव अपने सामाजिक संबंध के सहारे ही आगे चलकर अपने लक्ष्य को पूरा करने में सहायक सिद्ध होता है। मनुष्य के जीवन जीने के तौर-तरीके, रहन-सहन, खान-पान, मनुष्य जीवन के विभिन्न आयामों पर पड़ने वाले उत्सवों, समारोहों और संस्कारों को सामाजिक और सांस्कृतिक पर्यावरण कहा जाता है। पारिस्थितिकी यह वह विज्ञान है जिसके अन्तर्गत सभी जीवों तथा भौतिक पर्यावरण के मध्य उनके अन्तर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत मानव समाज और उसके भौतिक पर्यावरण की अंतक्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है। IV पारितंत्र प्रकृति में जीवों के विभिन्न समुदाय एक साथ रहते हैं और परस्पर एक-दूसरे के साथ-साथ अपने भौतिक पर्यावरण के साथ एक पारिस्थितिक इकाई के रूप में अन्योन्यक्रिया करते हैं। हम इसे पारितंत्र कहते हैं। पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) शब्द की रचना 1935 में ए.जी. टैन्सले के द्वारा की गई थी। एक पारितंत्र प्रकृति की क्रियात्मक इकाई है जिसमें इसके जैविक तथा अजैविक घटकों के बीच होने वाली जटिल अन्योन्यक्रियाएँ सम्मिलित है। उदाहरण के लिए तालाब पारितंत्र का अच्छा उदाहरण है। (i) पारितंत्र के घटक-पारितंत्र के घटकों को दो समूहों में बाँटा गया है- (A) अजैविक तथा (B) जैविक (A) अजैविक घटक (निर्जीव) - अजैविक घटकों को निम्न लिखित तीन वर्गों में विभाजित किया गया है (a) भौतिक कारक सूर्य का प्रकाश, तापमान, वर्षा, आर्दता तथा दाब यह पारितंत्र में जीवों की वृद्धि को सीमित और स्थिर बनाए रखते हैं। (b) अकार्बनिक पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस, सल्फर, जल, चट्टान, मिट्टी तथा अन्य खनिज 51 करोड़ वर्ग किलोमीटर है, (c) कार्बनिक पदार्थ कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड तथा ह्यूमिक पदार्थ यह सजीव तंत्र के मूलभूत अंग है और इसीलिए ये जैविक तथा अजैविक घटकों के बीच की कड़ी है। (B) जैविक घटक (सजीव ) (a) उत्पादक हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पूरे पारितंत्र के लिए भोजन का निर्माण करते हैं। हरे पौधे स्वपोषी कहलाते हैं, क्योंकि यह इस प्रक्रम के लिए मिट्टी से जल एवं पोषक तत्व, वायु से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड प्राप्त करते हैं तथा सूर्य से सौर ऊर्जा अवशोषित करते हैं। (b) उपभोक्ता यह विषमपोषी कहलाते हैं और स्वपोषियों द्वारा संश्लेषित किए गए भोजन को खाते हैं। भोजन की पसंद के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में रखा जा सकता है। शाकाहारी (गाय, हिरन और खरगोश आदि) सीधे ही पौधों को खाते हैं। माँसाहारी वे जन्तु है जो अन्य जन्तुओं को खाते हैं। (उदाहरण शेर, बिल्ली, कुत्ता आदि) और सर्वाहारी जीव पौधों और जन्तुओं दोनों को खाते हैं) उदाहरण - मानव, सुअर और गौरैया। (c) अपघटक इन्हें मृतपोषी भी कहते हैं। यह अधिकतर बैक्टीरिया (जीवाणु) और कवक होते हैं, जो पौधों तथा जन्तुओं के मृत अपघटित और मृत कार्बनिक पदार्थ जो सड़ रहे पदार्थों पर अपने शरीर के बाहर एन्जाइमों का खाव करके ग्रहण करते हैं। पोषकों के चक्रण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है इन्हें अपरवभोजी (Detriv ores) भी कहा जाता है। पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएँ (Characteristics of Ecosystem) यह संरचित एवं सुसंगठित तंत्र होता है। पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन तंत्र होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता उसमें ऊर्जा की सुलभता पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न प्रकार ऊर्जा द्वारा संचालित पर निर्भर करती है। होते हैं। • पारिस्थितिकी तंत्र एक खुला तंत्र है जिसमें पदार्थों तथा ऊर्जा का सतत् निवेश (Input) तथा बहिर्गमन (Output) होता है। आकार के आधार पर इसे अनेक भागों में बाँटा जा सकता है। (ii) पारितंत्र के कार्य पारितंत्र जटिल परिवर्तनात्मक तंत्र है। ये विशिष्ट कार्य करते हैं जो इस प्रकार हैं (A) खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह (B) पोषकों का चक्रण (भूजैवरासायनिक चक्र)। (C) पारिस्थितिकीय अनुक्रम या पारितंत्र का विकास। (D) समस्थापन (या संतात्रिका, cybernetic) या पुनर्भरण नियंत्रण प्रणालियाँ तालाब, झीलें, चरागाह, दलदल, घास के मैदान, मरुस्थल और जंगल प्राकृतिक पारितंत्र के उदाहरण हैं। आप लोगों में से कुछ ने अपने पड़ोस में एक्वेरियम, बगीचा या लॉन इत्यादि देखा होगा। ये मानव निर्मित पारितंत्र है। (iii) पारितंत्र के प्रकार- पारितंत्रों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है (A) प्राकृतिक पारितंत्र (Natural ecosystem) (B) मानव निर्मित पारितत्र (Human modified ecosystem) (A) प्राकृतिक पारितंत्र पूर्ण रूप से सौर विकिरण पर निर्भर उदाहरण, जंगल, घास के मैदान, समुद्र, झील, नदियाँ और मरुस्थल । इनसे हमें भोजन, ईंधन, चारा तथा औषधियाँ प्राप्त होती हैं। पारितंत्र सौर विकिरण तथा ऊर्जा सहायकों (वैकल्पिक सोत) जैसे हवा, वर्षा और ज्वार-भाटा पर निर्भर होता है। उदाहरण- उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, ज्वारनद मुख, कोरल रीफ (मूंगा चट्टान) (B) मानव निर्मित पारितंत्र सौर ऊर्जा पर निर्भर उदाहरण खेत और एक्वाकल्चर तालाब । जीवाश्म ईंधन पर निर्भर उदाहरण- नगरीय और औद्योगिक पारितंत्र पारिस्थितिकीय कर्मता (Ecological Niche) पारिस्थितिकीय कर्मता, किसी खास प्रजाति की उसके पर्यावरण में कार्यात्मक भूमिका तथा स्थिति को प्रदर्शित करता है। इसके अंतर्गत प्रजातियों द्वारा उपयोग किये जाने वाले संसाधनों की प्रकृति, उनके उपयोग के तरीकों एवं समय तथा उस प्रजाति की अन्य प्रजातियों के साथ अन्तर्क्रिया को भी सम्मिलित किया जाता है। पारिस्थितिकी कर्मता की संकल्पना को जोसेफ ग्रीनेल ने प्रतिपादित किया था। पारिस्थितिकीय कर्मता को प्रभावित करने वाले कारक संख्या चर-संख्या का घनत्व, प्रजाति का क्षेत्र, भोजन यां आहार की आवृत्ति । निकेत घर-स्थान की ऊँचाई दैनिक समय की अवधि, आहार तथा संख्या में अनुपात आवास घर- उच्चावच (ऊंचाई), ढाल की मृदा, मृदा की उर्वरता V. खाद्य श्रृंखला भोजन या ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर पारितंत्र में विभिन्न जातियों के बीच के संबंध को खाद्य श्रृंखला कहते हैं। किसी भी खाद्य श्रृंखला में हरे पौधे सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल कर खाद्य पदार्थों के रूप में संचित करते हैं। अतः हरे पौधे उत्पादक कहलाते हैं। शाकाहारी जीव इन उत्पादकों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं अतः यह प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता कहलाते है। 1. प्राकृतिक संसाधन एक संसाधन को किसी भी ऐसे प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ, ऊर्जा या जीव के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसका उपयोग मनुष्य अपने कल्याण के लिए करता है। 'प्राकृतिक संसाधन' शब्द का अर्थ उस सबसे है जिनका उपयोग हम अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपने पर्यावरण से प्राप्त करते हैं जैसे मिट्टी, वायु, पानी, खनिज, कोयला, धूप ( सूर्य का प्रकाश), पशु और पौधे, आदि। 2. कृत्रिम संसाधन वे संसाधन जो सभ्यता के विकास के दौरान मानव द्वारा विकसित किए गए हैं, कृत्रिम संसाधन कहलाते हैं। उदा. बायोगैस, तापीय विद्युत्, प्लास्टिक ये मानव-निर्मित संसाधन आम तौर पर कुछ अन्य प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होते हैं उदाहरण के लिए, प्राकृतिक संसाधन से प्लास्टिक और पेट्रोलियम प्राप्त होते हैं। संसाधन प्राकृतिक संसाधन (जैसे कोयला) समाप्य संसाधन (जैसे: पेट्रोलियम) नवीकरणीय संसाधन (जैसे: जल, वन तथा वायु) अक्षय संसाधन (जैसे सौर ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा आदि) कृत्रिम संसाधन (जैसे विद्युत) अनवीकरणीय संसाधन (जैसे पेट्रोलियम, कोयला आदि) प्राकृतिक संसाधनों को निम्न रूप से वर्गीकृत किया गया है (I) अक्षय संसाधन-वे संसाधन जो मानव उपभोग से समाप्त नहीं हो सकते हैं, अक्षय संसाधन कहलाते है। उदा. सौर विकिरण, पवन ऊर्जा, जल शक्ति (बहती धाराएँ) और ज्वारीय शक्ति जैसे ऊर्जा स्रोत और रेत, मिट्टी, हवा महासागरीय जल जैसे पदार्थ आदि। (II) समाप्य संसाधन- ऐसे संसाधन जो सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं और निरंतर उपयोग के परिणामस्वरूप समाप्त हो सकते हैं, समाप्य संसाधन कहलाते हैं। उदा. पृथ्वी में कोयले का भंडार सीमित है और निरंतर उपयोग के कारण एक दिन हमारे उपयोग के लिए कोयला उपलब्ध नहीं रहेगा। (III) नवीकरणीय संसाधन कुछ समाप्य संसाधन उपभोग के बाद स्वाभाविक रूप से पुनः उत्पन्न हो जाते है और इन्हें ही नवीकरणीय संसाधन के रूप में जाना जाता है। जैसे जंगल के पेड़ और पौधे नष्ट हो सकते हैं लेकिन उनके स्थान पर नए पेड़ और पौधे उग जाते हैं। इसके कुछ अन्य उदाहरण ताजा पानी, उपजाऊ मिट्टी, जंगल (लकड़ी और अन्य उत्पाद देने वाली). वन्य जीवन, वनस्पति आदि हैं। (IV) गैर-नवीकरणीय संसाधन-वे संसाधन, जिन्हें उपयोग के बाद प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। उदा. खनिज (तांबा, लोहा आदि) जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल आदि)। यहाँ तक कि वन्यजीव प्रजातियों (दुर्लभ पौधे और जानवर) भी इसी श्रेणी में आते हैं। वन जंगल में पौधे, जानवरों के श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्रदान करने में मदद करते हैं। वे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन भी बनाए रखते हैं। इस प्रकार वन, प्रकृति के लिए हरे फेफड़े और जल शोधन प्रणाली के रूप में कार्य करते हैं। जंगल एक गतिशील जीवित इकाई है पेड़ सबसे ऊपर की परत बनाते हैं, उसके बाद झाड़ियाँ होती है जड़ी-बूटियाँ वनस्पति की सबसे निचली परत बनाती है। वन विभिन्न जानवरों और पौधों का आवास भी होते हैं। वनस्पति की विभिन्न परतें जानवरों, पक्षियों और कीड़ों के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करती हैं। वनों में मिट्टी, पानी, हवा और जीवित जीवों के बीच परस्पर क्रिया होती है। भारतीय वन राज्य रिपोर्ट (ISFR) 2019 के अनुसार, हमारे देश का 21.67% भाग वनों से आच्छादित है। कैनोपी-जब ऊँचे पेड़ों की शाखाएँ जंगल में अन्य पौधों के ऊपर छत की तरह दिखती हैं, तो इसे कैनोपी कहा जाता है।। क्राउन-किसी पेड़ में तने के ऊपर का शाखायुक्त भाग क्राउन के रूप में जाना जाता है। खाद्य श्रृंखला - खाद्य श्रृंखला विभिन्न प्रकार के जीवधारियों का क्रम है जिनके द्वारा परितंत्र में हरित पादपों (उत्पादक) से ऊर्जा का रूपान्तरण होता है जैसे वे जीव जो पौधों को खाते हैं, उनको अक्सर अन्य जीव खा जाते हैं और इस प्रकार यह श्रृंखला बढ़ती जाती है। घास कीड़े मेंढक साँप चील ह्यूमस जब मशरूम और अन्य सूक्ष्मजीव मृत पौधों और जानवरों के ऊतकों को खाते हैं तो ये मृत पौधे और जानवर जिस गहरे रंग के पदार्थ में बदल जाते हैं, उसे ह्यूमस कहा जाता है। अपघटक-वे सूक्ष्म जीव जो मृत पौधों और जानवरों को ह्यूमस में परिवर्तित करते हैं, अपघटक कहलाते हैं। भारत एक उपोष्णकटिबंधीय देश होने के कारण, इसके अधिकांश हिस्सों में तापमान पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल है। इसके आधार पर वनों को पाँच प्रमुख प्रकारों में बाँटा जा सकता है। मरुस्थल (शुष्क वन ) - राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के दक्षिणी भाग पर्णपाती वन-प्रायद्वीपीय भारत उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन- पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी भारत का पर्वतीय क्षेत्र, उप-हिमालयी बेल्ट पर्वतीय वन - हिमालय, दक्षिण भारत ज्वारीय वन-गंगा और महानदी के ज्वारनदमुख 3. वनोन्मूलन • वनोन्मूलन का अर्थ है जंगलों को साफ करना और उस भूमि पर खेती करना, प्राप्त लकड़ी से फर्नीचर बनाना या उसको ईंधन के रूप में उपयोग करना या घरों और कारखानों का निर्माण करना। जंगल की आग (दावानल) तथा भीषण सूखा वनोन्मूलन के प्राकृतिक कारण हैं। • वनोन्मूलन के प्रभाव हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी। इससे होने वाली ग्लोबल वार्मिंग से जल चक्र बिगड़ जाएगा और कम वर्षा के कारण सूखा पड़ सकती है। पेड़ कम होने से मिट्टी का कटाव अधिक होता है। मिट्टी पानी को रोक कर नहीं रख पाएगी और इससे बाढ़ आ जाएगी। इस मिट्टी में ह्यूमस कम होता है और यह कम उपजाऊ होती है, इस प्रकार भूमि रेगिस्तान में परिवर्तित हो जाती है। इसे मरुस्थलीकरण कहते हैं। जानवरों को भोजन और आश्रय नहीं मिल पायेगा। 4. वृक्षारोपण नए पेड़ लगाने की प्रक्रिया वनरोपण/वृक्षारोपण कहलाती है। वनरोपण का उद्देश्य दो प्रकार के वानिकी कार्यक्रम हैं जैसे सामाजिक वानिकी और कृषि वानिकी । सामाजिक वानिकी – 1976 में शुरू हुई इसका उद्देश्य प्राकृतिक वनों को बढ़ावा देना और अप्रयुक्त भूमि पर पर वनों का विकास करना है। • कृषि वानिकी कृषि की सीमाओं में और उसके आसपास तथा सीमांत, निजी भूमि पर कृषि फसलों के साथ वृक्षारोपण करना कृषि वानिकी कहलाता है। इस भूमि का उपयोग कृषि फसलों और पेड़ों को उगाने और जानवरों के पालन के लिए 5. पुनर्वनारोपण किया जा सकता | अधिक से अधिक पौधरोपण कर नष्ट हुए वनों का पुनर्वनीकरण करना ही पुनर्वनारोपण कहलाता है। यह आम तौर पर पौधों की एक ही प्रजाति के रोपण से सम्बन्धित है। वनों की कटाई सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम 1980 पारित किया है जिसका उद्देश्य वन क्षेत्रों में या उसके आस-पास रहने वाले लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ वनों का संरक्षण करना है। भारत सरकार ने लोगों की मदद से निम्नीकृत वनों को पुनजर्जीवित करने और उनकी रक्षा करने के लिए संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम भी शुरू किया है। 6. वनस्पतिजात एवं प्राणीजात किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले पादपों और जानवरों को क्रमशः उस क्षेत्र के वनस्पतिजात और प्राणीजात कहा जाता है। भारत में विविध प्रकार के पौधे पाए जाते हैं और इनकी प्रजातियों की संख्या लगभग 45,000 है। इनमें 15,000 पुष्पी पावप, 1.676 शैवाल, 1.940 लाइकेन 12,480 कवक, 64 जिम्नोस्पर्म 2.843 ब्रायोफाइट्स तथा 1.012 टेरिडोफाइट्स शामिल हैं। भारत में जंतुओं की 81,251 विविध प्रजातियाँ है और ये विश्व के जीवों का लगभग 6.67% है। इनमें 60,000 कीट, 5,000 मोलस्क, 372 स्तनधारी 1.228 पक्षी, 446 सरीसृप, 204 उभयचर तथा 2.546 मत्स्य वर्ग के जीव शामिल हैं। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) देश के जीव-जंतु संसाधनों का सर्वेक्षण करने के लिए जिम्मेदार है। 7. प्रजातियाँ यह ऐसे जीवों का एक समूह है जो अंतरप्रजनन करने में सक्षम हैं। ये केवल अपनी प्रजाति के सदस्यों के साथ संतान पैदा करते हैं, किसी अन्य के साथ नहीं। लुप्तप्राय प्रजातियाँ ऐसी प्रजातियाँ जिनकी संख्या कम है और विलुप्त होने के कगार पर हैं, उन्हें लुप्तप्राय प्रजाति कहा जाता है। पर्यावरण प्रदूषण, वनों की कटाई, आवास की समाप्ति, मानव हस्तक्षेप, अवैध शिकार जैसे विभिन्न कारणों से भारत में कई जानवर विलुप्त हो चुके हैं और कई लुप्तप्राय हैं। ज्ञात हो कि जो प्रजातियाँ अब पृथ्वी पर उपस्थित नहीं हैं उन्हें विलुप्त प्रजाति कहा जाता है। उदा. डायनासोर, डोडो। ऐसी रिपोर्ट है कि भारत में पौधों और जानवरों की लगभग 132 प्रजातियों गंभीर रूप से संकटग्रस्त (लुप्तप्राय हैं। हिम तेंदुआ, बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, बैंगनी मेढक और भारतीय विशाल गिलहरी भारत के कुछ लुप्तप्राय जानवर है। कई शैवाल, कवक, बायोफाइट्स, फर्न और जिम्नोस्पर्म जंगलों के विनाश के साथ गायब हो रहे हैं। कुछ लुप्तप्राय पौधे-अम्ब्रेला ट्री. मालाबार लिली, रैफलेसिया फूल भारतीय मैलो मुसली का पौधा आदि। कुछ लुप्तप्राय जानवर-हिम तेंदुआ, एशियाई शेर, शेर की पूंछ वाला मैकॉक, भारतीय गैंडा, नीलगिरि तहर आदि । स्थानिक प्रजातियाँ किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले पौधों और जानवरों की • प्रजातियों को स्थानिक प्रजाति के रूप में जाना जाता है। ये • पौधे और जतु स्वाभाविक रूप से कहीं और नहीं पाए जाते है। 1. प्राकृतिक संसाधन एक संसाधन को किसी भी ऐसे प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ, ऊर्जा या जीव के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसका उपयोग मनुष्य अपने कल्याण के लिए करता है। 'प्राकृतिक संसाधन' शब्द का अर्थ उस सबसे है जिनका उपयोग हम अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपने पर्यावरण से प्राप्त करते हैं जैसे मिट्टी, वायु, पानी, खनिज, कोयला, धूप ( सूर्य का प्रकाश), पशु और पौधे, आदि। 2. कृत्रिम संसाधन वे संसाधन जो सभ्यता के विकास के दौरान मानव द्वारा विकसित किए गए हैं, कृत्रिम संसाधन कहलाते हैं। उदा. बायोगैस, तापीय विद्युत्, प्लास्टिक ये मानव-निर्मित संसाधन आम तौर पर कुछ अन्य प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होते हैं उदाहरण के लिए, प्राकृतिक संसाधन से प्लास्टिक और पेट्रोलियम प्राप्त होते हैं। संसाधन प्राकृतिक संसाधन (जैसे कोयला) समाप्य संसाधन (जैसे: पेट्रोलियम) नवीकरणीय संसाधन (जैसे: जल, वन तथा वायु) अक्षय संसाधन (जैसे सौर ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा आदि) कृत्रिम संसाधन (जैसे विद्युत) अनवीकरणीय संसाधन (जैसे पेट्रोलियम, कोयला आदि) प्राकृतिक संसाधनों को निम्न रूप से वर्गीकृत किया गया है (I) अक्षय संसाधन-वे संसाधन जो मानव उपभोग से समाप्त नहीं हो सकते हैं, अक्षय संसाधन कहलाते है। उदा. सौर विकिरण, पवन ऊर्जा, जल शक्ति (बहती धाराएँ) और ज्वारीय शक्ति जैसे ऊर्जा स्रोत और रेत, मिट्टी, हवा महासागरीय जल जैसे पदार्थ आदि। (II) समाप्य संसाधन- ऐसे संसाधन जो सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं और निरंतर उपयोग के परिणामस्वरूप समाप्त हो सकते हैं, समाप्य संसाधन कहलाते हैं। उदा. पृथ्वी में कोयले का भंडार सीमित है और निरंतर उपयोग के कारण एक दिन हमारे उपयोग के लिए कोयला उपलब्ध नहीं रहेगा। (III) नवीकरणीय संसाधन कुछ समाप्य संसाधन उपभोग के बाद स्वाभाविक रूप से पुनः उत्पन्न हो जाते है और इन्हें ही नवीकरणीय संसाधन के रूप में जाना जाता है। जैसे जंगल के पेड़ और पौधे नष्ट हो सकते हैं लेकिन उनके स्थान पर नए पेड़ और पौधे उग जाते हैं। इसके कुछ अन्य उदाहरण ताजा पानी, उपजाऊ मिट्टी, जंगल (लकड़ी और अन्य उत्पाद देने वाली). वन्य जीवन, वनस्पति आदि हैं। (IV) गैर-नवीकरणीय संसाधन-वे संसाधन, जिन्हें उपयोग के बाद प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। उदा. खनिज (तांबा, लोहा आदि) जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल आदि)। यहाँ तक कि वन्यजीव प्रजातियों (दुर्लभ पौधे और जानवर) भी इसी श्रेणी में आते हैं। एक्स-सीटू संरक्षण-यह जीवों का उनके प्राकृतिक आवास के बाहर किया जाने वाला संरक्षण है। इसमें चिड़ियाघरों और वनस्पति उद्यानों की स्थापना, जीन का संरक्षण, अंकुर और ऊतक संवर्धन आदि पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं। वानस्पतिक उद्यान-यह एक ऐसा स्थान है जहाँ फूल, फल और सब्जियों उगाई जाती है। ये स्थान एक स्वस्थ और शांत वातावरण प्रदान करते हैं। किया जाता है। प्राणी उद्यान- वे ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जंगली जानवरों का संरक्षण ऊतक संवर्धन यह जीवाणुरहित वातावरण में एक पोषक माध्यम पर पौधों की कोशिकाओं, ऊतकों, अंगों, बीजों या अन्य पौधों के हिस्सों को उगाने की एक तकनीक है। सीड बैंक बीज बैंक में सूखे बीजों को बहुत कम तापमान में स्टोर करके सुरक्षित रखा जाता है। दुनिया का सबसे बड़ा बीज बैंक इंग्लैंड का मिलेनियम सीड बैंक है। क्रायो बैंक यह एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा एक बीज या भ्रूण को बहुत कम तापमान पर संरक्षित किया जाता है। यह आमतौर पर तरल नाइट्रोजन में 196°C पर संरक्षित होता है। यह विलुप्ति का सामना कर रही प्रजातियों के संरक्षण के लिए सहायक है। -विविधता जीवों की विविधता, उनके अंतसंबंध और पर्यावरण के साथ उनके संबंध को जैव विविधता के रूप में जाना जाता है। विश्व के 34 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से चार भारत में स्थित हैं और ये हैं-हिमालय, पश्चिमी घाट, इंडो-बर्मा क्षेत्र और सुंडालैंड (अंडमान-निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं)। जैव विविधता के लिए खतरा: प्राकृतिक कारण- बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, प्रजातियों के बीच प्राकृतिक प्रतिस्पर्धा, परागण की कमी और रोग। मानव निर्मित कारण-विकास गतिविधियाँ जैसे आवास, कृषि, बांधों का निर्माण, जलाशय, सड़कें, रेलवे ट्रैक आदि । जैव विविधता का नुकसान यह तब होता है जब या तो किसी के अस्तित्व के लिए आवश्यक आवास नष्ट हो जाता है या कोई विशेष प्रजाति नष्ट हो जाती है। जैव विविधता संरक्षण के लाभ खाद्य श्रृंखला की निरंतरता को बनाए रखने के लिए जैव विविधता का संरक्षया किया जाता है। यह मनोरंजन और पर्यटन के रूप में समाज को तत्काल लाभ प्रदान करता है। यह पृथ्वी पर जीवन सहायक प्रणालियों के सतत् उपयोग को सुनिश्चित करता है। सन जब कोई जानवर या पक्षी मौसम में बदलाव के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है। इसे प्रवासन के रूप में जाना जाता इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण एवं सुधार के लिए योजना करना था। (B) पर्यावरण सम्बन्धी प्रमुख आन्दोलन (a) चिपको आन्दोलन, 1973 • इस आन्दोलन के नेता सुन्दर लाल बहुगुणा थे। इस आन्दोलन की शुरुआत आज के उत्तराखण्ड के गोपेश्वर शहर के रेनी नामक गाँव से हुई थी। इस आन्दोलन में महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर उनकी रक्षा करती थीं। आज से लगभग तीन सौ साल पहले राजस्थान के जोधपुर शहर के खेजड़ली नामक गाँव में खेजड़ी वृक्षों की रक्षा करते हुए अमृता देवी बिश्नोई ने अपनी जान दे दी थी। (b) अप्पिको आन्दोलन, 1993 • इस आन्दोलन के नेता पाण्डुरंग हेगड़े थे। ध्यान रहे कि यह चिपको आन्दोलन का ही रूप था, जिसकी शुरुआत कर्नाटक में हुई थी। (c) नर्मदा आन्दोलन, 1989 • इस आन्दोलन के प्रमुख नेता बाबा आम्टे मेधा पाटेकर थे तथा इस आन्दोलन की शुरुआत नर्मदा नदी पर बन रहे बाँध के विरोध में हुई। (C) पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी पुरस्कार (a) इन्दिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार की शुरुआत 1987 में हुई। यह किसी संगठन या व्यक्ति विशेष को पर्यावरण के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए दिया जाता है। (b) राजीव गाँधी पर्यावरण पुरस्कार की शुरुआत 1993 में हुई। यह उन औद्योगिक संस्थानों एवं इकाइयों को दिया जाता है, जो पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी योजनाओं को लागू करते हैं। रेड डाटा बुक • रेड डाटा बुक एक दस्तावेज है जिसमें जानवरों, पौधों और कवकों की दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का डाटा संग्रह किया जाता है। रेड डाटा बुक द्वारा दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों की आदतों और आवासों पर अध्ययन और निगरानी कार्यक्रमों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। यह पुस्तक विलुप्त होने वाली प्रजातियों की पहचान करने और उनकी रक्षा करने के लिए बनाई गई है। रेड डाटा बुक का रखरखाव इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा किया जाता है। कभी

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