परिवार की कार्य व्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक 'पारिवारिक आय है। “पारिवारिक आय निश्चित अवधि में कमाई जाने वाली वह धनराशि है जो व्यक्ति को आर्थिक प्रयत्नों के फलस्वरूप
परिवार की कार्य व्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक 'पारिवारिक आय है। “पारिवारिक आय निश्चित अवधि में कमाई जाने वाली वह धनराशि है जो व्यक्ति को आर्थिक प्रयत्नों के फलस्वरूप
परिवार की कार्य व्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक 'पारिवारिक आय है। “पारिवारिक आय निश्चित अवधि में कमाई जाने वाली वह धनराशि है जो व्यक्ति को आर्थिक प्रयत्नों के फलस्वरूप
होती है।"
आय के प्रकार आय दो प्रकार की होती है- है
(1) उपार्जित आय- यह आय व्यक्ति को अपने आर्थिक प्रयत्नों से प्राप्त होती है, जैसे-नौकरी, व्यापार, मजदूरी, जमा धन पर ब्याज के रूप में या रॉयल्टी के रूप में प्राप्त होती है। (2) अनुपार्जित आय- अनुपार्जित आय व्यक्ति को विरासत द्वारा सम्पत्ति के किराये के रूप में, लाटरी द्वारा वि
में उपहार के रूप में प्राप्त होती है। आय चाहे उपार्जित हो या अनुपाजित हो गृह की कार्य-व्यवस्था में यदि इनके उपयोग करने की सही योजना होती है तो कम आय में भी घर की व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहती है। किन्तु इसी जगह यदि घर की गृहिणी में सूझ-बूझ की कमी होती है तो कितनी भी अधिक आय होने पर भी घर की कार्य-व्यवस्था और अर्थव्यवस्थ हमेशा बिगड़ी हुई रहती है, जिसका प्रभाव घर के प्रत्येक सदस्य पर पड़ता है। घर के सदस्यों के कार्य सही प्रकार के नहीं हो पाते तथा सभी सदस्य असन्तुष्ट दिखाई देते हैं, जिसके कारण घर का वातावरण दुःखदायी हो जाता है। अतः आय के सही उपयोग के लिए गृहिणी के साथ-साथ घर के सभी सदस्यों को भी इसमें उचित सहयोग करना चाहिए। गृह-कार्य व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए पर्याप्त आय के साथ-साथ परिवार के सदस्यों की कार्यक्षमता, सहयोग, सूझ-बुझ अभिरुचि का भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
पारिवारिक आय के साधन
परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परिवार के सदस्य अलग-अलग कार्यों में रत रहकर अथवा एक ही व्यवसाय से जुड़े रहकर धन अर्जित करते हैं। जिन साधनों से परिवार के लिए धन अर्जित किया जाता है, उन्हें आय के साधन कहते हैं, जो अग्रवत् हैं
(4) ब्याज- पारिवारिक आय से होने वाली बचत को बैंक अथवा डाकघर में जमा करके ब्याज प्राप्त किया जाता है। कुछ व्यक्ति दूसरों को ब्याज पर धन उधार देते हैं तथा इसके बदले में उसकी कोई वस्तु जैसे मकान, आभूषण आदि अपने पास गिरवी रख लेते हैं। यदि वह व्यक्ति समय पर ब्याज अदा न कर सका, तो उसकी बहुमूल्य वस्तु जब्त हो जाती है।
(5) उपहार- कभी-कभी परिवार के सदस्यों को अपने मित्रों व सगे-सम्बन्धियों से उपहार के रूप में कुछ धनराशि मिल जाती है। इसे भी पारिवारिक आय के साधनों में ही सम्मिलित किया जाता है। इस आय का कोई निश्चित अवसर व धनराशि नहीं होती। उपहार अधिकतर विवाह, जन्म-दिवस, त्यौहारों अथवा उत्सवों में भेंट किये जाते हैं। इस आय में न केवल मुद्रा ही होती है, वरन् विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ भी होती हैं।
(6) पेंशन तथा ग्रेच्युटी नौकरी से व्यक्ति एक निश्चित आयु पर सेवामुक्त हो जाता है। इस स्थिति में उसे उस संस्थान, जिसमें वह कार्यरत था, से अपनी आय का कुछ प्रतिशत धन प्रतिमाह आजीवन प्राप्त होता है, जिसे पेंशन कहते हैं। कभी कभी पेंशन के साथ उस व्यक्ति को कुछ महीनों का वेतन सेवामुक्त होने पर इकट्ठा प्राप्त होता है, जो ग्रेच्युटी कहलाता है। पेंशन तथा ग्रेच्युटी की सुविधाएँ केवल सरकारी कर्मचारियों को ही प्राप्त होती हैं। प्राइवेट कम्पनी में कार्यरत कर्मचारियों को सेवामुक्त होने पर ये सुविधाएँ प्राप्त नहीं होतीं। पेंशन व ग्रेच्युटी से अपने परिवार के पालन-पोषण में उस व्यक्ति को अत्यन्त लाभ होता है। उस कर्मचारी की मृत्यु के बाद भी पेंशन का कुछ भाग मृतक की पत्नी को आजीवन मिलता रहता है, जिससे उसे आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता।
( 7 ) किराया- जिन व्यक्तियों के पास मकान, दुकान व जमीन की सम्पत्ति होती है, वे उन्हें किराये पर उठाकर अपनी आय का साधन जुटा लेते हैं। किराया प्रायः मासिक रूप में अदा किया जाता है। किराये से उपलब्ध धनराशि से व्यक्ति आर्थिक रूप से सम्पन्न बना रहता है, क्योंकि उसकी सम्पत्ति पर उसका ही अधिकार रहता है। (8) रॉयल्टी-लेखक अपनी पुस्तकों पर, प्रकाशक से जो धन प्राप्त करता है, उसे रॉयल्टी कहते हैं। इस कार्य के द्वारा
वह अपनी पारिवारिक आय में पर्याप्त वृद्धि कर सकता है।
(9) घरेलू उद्योग-धन्धे– पारिवारिक आय बढ़ाने के लिए कुछ लोग घरेलू उद्योग-धन्धों का भी सहारा लेते हैं, जैसे- दरी-कालीन
बुनना, कलात्मक वस्तुएँ बनाना, स्वेटर बुनना, कपड़े सिलना, अचार-मुरब्बे तैयार करना तथा पापड़-बड़ियाँ आदि बनाना। इन
कार्यों से भी पारिवारिक आय में वृद्धि होती है।
गृहिणी के कर्त्तव्य
वैसे तो उत्तम गृह कार्य व्यवस्था के लिए परिवार का हर सदस्य थोड़ा-बहुत उत्तरदायी होता है, लेकिन सुव्यवस्थित तथा सुनियोजित परिवार के निर्माण का मुख्य दायित्व परिवार की गृहिणी का ही होता है। अतः प्रत्येक गृहिणी को अपने कर्तव्यों की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। गृहिणी को अपने पारिवारिक जीवन में पुत्री व पत्नी के रूप में, माता व गुरु के रूप में, गृह स्वामिनी तथा गृह-संचालिका के रूप में कर्त्तव्यों का पालन करना पड़ता है। उसके कार्यों व कर्त्तव्यों का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, अतः उनकी ठीक प्रकार से गणना सम्भव नहीं, फिर भी उसके कर्त्तव्यों का विभाजन मुख्यतः अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है
(1) पारिवारिक कर्त्तव्य गृहिणी का प्रमुख कर्त्तव्य होता है कि वह अपने पारिवारिक जीवन को शान्तिमय और आनन्दमय बनाने के लिये परिवार के सदस्यों का यथासम्भव सम्मान करे, उनके सुख-दुःख में उनकी सहचरी बने व उनकी विभिन्न आवश्यकताओं की तन, मन व धन से पूर्ति करे घर के सभी सदस्यों से स्नेह व माधुर्य बनाये रखे तथा किसी से भी कटु तथा अप्रिय शब्द न बोले। पत्नी के रूप में गृहिणी का कर्त्तव्य है कि वह अपने पति की इच्छाओं, भावनाओं व विचारों का समर्थन करे तथा उसे हर प्रकार से प्रसन्न रखने का प्रयास करे। उसके विचारों से यदा-कदा सामंजस्य न होने पर अत्यन्त आत्मीयता और स्नेहपूर्ण व्यवहार से पति को अपने विचारों से अवगत कराये।
(2) शिक्षा सम्बन्धी कर्तव्य-पत्नी बनने के उपरान्त गृहिणी माता भी बनती है। मातृत्व का सुख अनूठा एवं ममता से ओत प्रोत होता है। इस सुख की अनुभूति के बिना एक गृहिणी का जीवन अपूर्ण और अर्थहीन समझा जाता है। माँ बनने के साथ साथ गृहिणी के कर्त्तव्य भी बढ़ जाते हैं। गृहिणी ही बच्चों का लालन-पालन तथा उनकी देख-रेख करती है। वही बच्चों को भाषा बोध कराती है। बच्चों के समुचित विकास एवं पालन-पोषण का दायित्व भी गृहिणी का ही माना जाता है। माँ के रूप में गृहिणी
(1) वेतन- व्यक्ति नौकरी करके जो भी आय अर्जित करता है, वह उसे वेतन के रूप में प्राप्त होती है। वेतन के रूप में प्राप्त आय व्यक्ति की योग्यता, कार्य क्षमता, शिक्षा, पद व अनुभव के आधार पर होती है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी उसे अतिरिक्त सुविधाएँ भी प्राप्त होती हैं, जो भत्ते के रूप में प्राप्त की जाती हैं; जैसे-महँगाई भत्ता, मकान भत्ता, यात्रा भत्ता आदि।
(2) मजदूरी- शारीरिक श्रम करके प्राप्त होने वाली आय को मजदूरी कहते हैं। आय व्यक्ति की योग्यता, क्षमता व कार्यकुशलता पर निर्भर करती है। मजदूरी दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक कैसी भी हो सकती है। मजदूरी की दरें कार्य तथा क्षेत्र के अनुसार होती हैं। कुछ कार्यों में अनुभव के आधार पर भी मजदूरी मिल जाती है।
(3) व्यवसाय- कुछ परिवारों में अपना व्यक्तिगत अथवा साझेदारी में व्यवसाय होता है; जैसे कपड़े का व्यवसाय, का व्यवसाय, दूध की डेरी, प्रिंटिंग प्रेस, किताबों का व्यवसाय इत्यादि । विभिन्न व्यवसायों द्वारा भी मनुष्य, परिवार और अपनी जीविका चलाने के लिए धन अर्जित करते हैं। कोयले
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