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Showing posts from October, 2021

मित्रता

मित्रता जब कोई युवा पुरुष अपने घर से बाहर निकलकर बाहरी संसार में अपनी स्थिति है, पहली जनता उसे चुनने में पड़ती है। यदि उसकी एक और निराली नहीं रही तो सीजन के लोग बढ़ते जाते हैं और गोड़े ही दिनों में कुछ लोगों से उसका हल हो जाता है। यही मा के रूप में परिणत हो जाता है। मित्रों के चुनाव की पर उसके जीवन की सफलता निर्भर होती है। क्योंकि संगति का गुना प्रभाव हमारे आवरण पर बड़ा भारी पड़ता है। हम लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरम्भ करते हैं, जबकि हमारा मिस कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य है, हमारे परिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं, जिसे ज उस रूप का करे—आहे राक्षस बनावे चहेता ऐसे लोगों का साथ नलिए हमसे अधिक दू संकल्प के हैं, क्योंकि हमें उनकी हर एक मतबिना विरोध के मान लेनी है। पर ऐसे लोगों का साथ करना और बुरा है, जो हमारी ही बात को ऊपर रखते हैं, क्योंकि ऐसी दशा में ऊपर कोई दबाव रहता है और न हमारे लिए कोई सहारा रहता है। दोनों अवस्थाओं में जिस का भय रहता है तो प्रायः बहुत कम रहता है। यदि विवेक से काम लिया जा...

परिवार की कार्य व्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक 'पारिवारिक आय है। “पारिवारिक आय निश्चित अवधि में कमाई जाने वाली वह धनराशि है जो व्यक्ति को आर्थिक प्रयत्नों के फलस्वरूप

परिवार की कार्य व्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक 'पारिवारिक आय है। “पारिवारिक आय निश्चित अवधि में कमाई जाने वाली वह धनराशि है जो व्यक्ति को आर्थिक प्रयत्नों के फलस्वरूप होती है।" आय के प्रकार आय दो प्रकार की होती है- है (1) उपार्जित आय- यह आय व्यक्ति को अपने आर्थिक प्रयत्नों से प्राप्त होती है, जैसे-नौकरी, व्यापार, मजदूरी, जमा धन पर ब्याज के रूप में या रॉयल्टी के रूप में प्राप्त होती है। (2) अनुपार्जित आय- अनुपार्जित आय व्यक्ति को विरासत द्वारा सम्पत्ति के किराये के रूप में, लाटरी द्वारा वि में उपहार के रूप में प्राप्त होती है। आय चाहे उपार्जित हो या अनुपाजित हो गृह की कार्य-व्यवस्था में यदि इनके उपयोग करने की सही योजना होती है तो कम आय में भी घर की व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहती है। किन्तु इसी जगह यदि घर की गृहिणी में सूझ-बूझ की कमी होती है तो कितनी भी अधिक आय होने पर भी घर की कार्य-व्यवस्था और अर्थव्यवस्थ हमेशा बिगड़ी हुई रहती है, जिसका प्रभाव घर के प्रत्येक सदस्य पर पड़ता है। घर के सदस्यों के कार्य सही प्रकार के नहीं हो पाते तथा सभी सदस्य...

गृह की कार्य-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारक कोई भी कार्य व्यवस्था बनायी जाय, उसकी सफलता में सहायता देने वाले कुछ कारक होते हैं। घर की कार्य को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं--- -व्यवस्था

गृह की कार्य-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारक कोई भी कार्य व्यवस्था बनायी जाय, उसकी सफलता में सहायता देने वाले कुछ कारक होते हैं। घर की कार्य को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं--- -व्यवस्था (1) गृह की स्थिति गृह का निर्माण कैसे स्थान पर है, वह किस प्रकार का है, यह दोनों बातें घर की व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। घर से बाजार, स्कूल-कॉलेज, डाकखाना, बैंक, अस्पताल तथा गृहस्वामी का कार्यस्थल कितनी दूर है, इन सब बातों का प्रभाव भी गृह की व्यवस्था पर पड़ता है। घर में परिवार के सदस्यों के लिए जितना स्थान है, उसके अनुरूप ही कमरों का प्रबन्ध करना पड़ता है। शौच गृह, स्नान गृह आदि का जैसा प्रबन्ध होता है, वैसी ही उनकी सफाई आदि की व्यवस्था करनी पड़ती है। भार (2) परिवार का संगठन एकाकी परिवार है अथवा संयुक्त, घर में किस आयु के सदस्य हैं, इन बातों को ध्यान में रखकर गृह व्यवस्था करनी पड़ती है। छोटे परिवार में जहाँ एक ओर कार्य कुछ कम रहता है, वहीं दूसरी ओर व्यवस्था का समस्त भार मुख्य रूप से अकेली गृहिणी पर ही पड़ता है। संयुक्त परिवार में कार्य अधिक होता है और साधन भी अधिक जुटाने पड़ने हैं, किन्त...

शरीर की स्वच्छता से मन प्रसन्न रहता है, शरीर में उत्साह, स्फूर्ति और प्रफुल्लता रहती है, शरीर निरोग रहता है, व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देख-रेख एवं सुरक्षा

शरीर की स्वच्छता से मन प्रसन्न रहता है, शरीर में उत्साह, स्फूर्ति और प्रफुल्लता रहती है, शरीर निरोग रहता है, व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देख-रेख एवं सुरक्षा हमें शरीर के निम्नलिखित अंगों की स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए (1) त्वचा की स्वच्छता हमारा सारा शरीर त्वचा से ढका हुआ है। अन्दर की गन्दगी त्वचा द्वारा पसीने के रूप बाहर निकलती है। पसीना निकालने के लिए त्वचा पर असंख्य छिद्र होते हैं। यदि ये छिद्र बन्द हो जायँ तो पसीना शरीर से बाहर नहीं निकल पायगा और फिर सारी गन्दगी गुर्दों को ही निकालनी पड़ेगी, जिससे गुर्दे कमजोर हो जायेंगे। पसीना ऐसा तरल पदार्थ है, जिसमें बदबू होती है। यदि इसकी सफाई न की जाय तो कपड़ों तथा शरीर से भी बदबू आने लगेगी। स्नान करने से पसीना दूर होता है। शरीर से आलस्य भाग जाता है, मन प्रसन्न होता है। स्नान करने से रक्त संचार बढ़ जाता है, स्फूर्ति आती है। स्नान भी दो प्रकार से किया जाता है- (i) ठण्डे जल से, (ii) गरम जल से गर्मियों में ठण्डे जल से स्नान किया जाता है। सर्दी के मौसम में गरम जल से स्नान किया जाता है, स्नान करते समय साबुन का प्रयोग कम करना चाहिए। अधिक साबुन रगड़ने...