: यूरोप में धर्म-सुधार आन्दोलन

यूरोप में धर्म-सुधार आन्दोलन


यूरोप में धर्म-सुधार आन्दोलन

यूरोप में सोलहवीं शताब्दी के धर्म-सुधार आन्दोलन को दो चरणों में बाँटा जा सकता है- प्रोटेस्टेण्ट धर्म-सुधार एवं रोमन कैथोलिक धर्म-सुधार।

धर्म-सुधार आन्दोलन के कारण

धार्मिक कारण

रोमन कैथोलिक चर्च के विरुद्ध असन्तोष मध्यकाल के अन्तिम दिनों में रोमन कैथोलिक चर्च के अन्दर ही कुछ मूलभूत सिद्धान्तों के विरुद्ध असन्तोष बढ़ रहा था।

चर्च के अन्तर्गत व्याप्त बुराइयाँ धर्म-सुधार का दूसरा प्रमुख कारण चर्च के अन्तर्गत व्याप्त बुराइयाँ थीं, ये बुराइयाँ 15वीं एवं 16वीं शताब्दी में पैदा हो गई थीं। इस प्रकार कैथोलिक धर्म की बुराइयों के विरोध में प्रोटेस्टेण्ट धर्म का अभ्युदय हुआ।

आर्थिक कारण

वाणिज्य एवं व्यापार के कारण जब मुद्रा प्रधान अर्थव्यवस्था कायम हुई, तब कर्ज लेने की प्रथा जोरों से चल रही थी, किन्तु चर्च अनुसार कर्ज लेना पाप है।

अतः चर्च के सिद्धान्त व्यापार की प्रगति में बड़े अवरोधक थे, इसके अतिरिक्त राजाओं को सैन्य प्रशासन चलाने हेतु अधिक धन की आवश्यकता थी। पादरियों द्वारा वसूला जाने वाला कर रोम चला जाता था, साथ ही पादरी वर्ग अमीर होने के बाद भी कर मुक्त थे।

पुनर्जागरण का प्रभाव

पुनर्जागरण एक व्यापक शब्द है, जिसका प्रयोग उन सभी बौद्धिक परिवर्तनों के लिए किया जाता है, जो मध्य युग के अन्त में हुए थे। पुनर्जागरण इटली से प्रारम्भ हुआ। बौद्धिक पुनर्जागरण के कारण चर्च और उसके प्रधान पोप के विरुद्ध विद्रोह की भावना ने जोर पकड़ लिया।

कृषकों का शोषण

चर्च-शोषित कृषकों का असन्तोष भी धर्म-सुधार आन्दोलन का कारण था, क्योंकि पादरी सामन्त प्रथा तथा कृषकों के शोषण का समर्थन करते थे।

इस प्रकार हम देखते हैं कि 16वीं सदी के अन्त तक चर्च के विरुद्ध धार्मिक, राजनीतिक व बौद्धिक असन्तोष चरम सीमा तक पहुँच चुका था, जिसे एक कुशल नेतृत्व की जरूरत थी, जो ज्विंगली, लूथर, कॉलविन आदि ने उपलब्ध कराया।

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