भारत छोड़ो आन्दोलन
भारत छोड़ो आन्दोलन गाँधीजी द्वारा आयोजित अन्तिम आन्दोलन था। इस
आन्दोलन की विशेषता थी कि यह आन्दोलन पूर्णतः अहिंसक नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारत की जनता का चरम आक्रोश था।
भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण
भारत छोड़ो आन्दोलन के कई कारण थे, जो निम्नलिखित हैं • संवैधानिक गतिरोध को हल करने में क्रिप्स मिशन की असफलता ने संवैधानिक विकास के मुद्दे पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रुख को उजागर कर दिया था तथा यह बात स्पष्ट हो गई कि भारतीयों की ज्यादा समय तक चुप्पी उनके भविष्य
को ब्रिटेन के हाथों में सौंपने के समान होगी। मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि तथा चावल, नमक इत्यादि आवश्यक वस्तुओं के अभाव में सरकार के विरुद्ध जनता में तीव्र असन्तोष था। दक्षिण-पूर्वी एशिया में ब्रिटेन की पराजय तथा शक्तिशाली ब्रिटेन के पतन के
समाचार ने असन्तोष को व्यक्त करने की इच्छाशक्ति भारतीयों में जगाई।
• बर्मा और मलाया को खाली करने के ब्रिटिश सरकार के तौर-तरीकों से काफी
असन्तोष फैला। निराशा के कारण, जापानी आक्रमण का जनता द्वारा कोई प्रतिरोध न किए जाने की आशंका से राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओं को संघर्ष प्रारम्भ करना अपरिहार्य लगने लगा। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक ग्वालिया टैंक, बम्बई (मुम्बई) में 7
आन्दोलन का प्रारम्भ एवं प्रसार
अगस्त, 1942 को हुई। इस बैठक में गांधीजी के वर्धा प्रस्ताव को स्वीकृति देते
हुए अंग्रेजों भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित किया गया तथा घोषणा की गई कि • भारत में ब्रिटिश शासन को तुरन्त समाप्त किया जाए। अंग्रेजों की
वापसी के
पश्चात् कुछ समय के लिए अस्थायी सरकार की स्थापना की जाएगी।
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया गया। • गाँधीजी को संघर्ष का नेता घोषित किया गया। • 8 अगस्त, 1942 को बम्बई में भारत छोड़ो प्रस्ताव पास होते ही भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हो गया। इसे अगस्त क्रान्ति भी कहा जाता है। इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए गाँधीजी ने जनता को करो या मरो का नारा दिया। आन्दोलन प्रारम्भ होते ही इसके शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर
लिया गया, जिससे आन्दोलन नेतृत्वविहीन हो गया तथा इसने हिंसक व उग्र
रूप धारण कर लिया।
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण निम्न हैं।
• सरकार द्वारा 'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत कांग्रेस के महत्त्वपूर्ण नेताओं (महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू आदि) को गिरफ्तार किया जाना।
• आन्दोलन में नेतृत्वकर्ता का अभाव होना। • सरकार द्वारा आन्दोलन के प्रति अपनाई गई दमन की नीति
.
सभी राजनीतिक संगठनों का सहयोग प्राप्त नहीं हो पाना।
सेना, पुलिस तथा जमींदारों द्वारा अंग्रेजों का साथ देना।
• आन्दोलनकारियों के पास संसाधनों का अभाव होना। भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्त्व
• भारत छोड़ो आन्दोलन ने अपने लक्ष्य
में असफल रहने के बावजूद भी परोक्ष
रूप से जनता की चेतना को जाग्रत किया। • भारत छोड़ो आन्दोलन से प्रेरणा पाकर ही 1946 ई. में नौसेना द्वारा ब्रिटिश
सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया गया। • इस आन्दोलन के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष में जनमत मजबूत
हुआ। भारत छोड़ो आन्दोलन ने इंग्लैण्ड के विभिन्न राजनीतिक दलों को भारतीय समस्या पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने के लिए विवश कर दिया।
परिणाम
सरकार ने निर्ममता से आन्दोलन का दमन किया। अन्ततः आन्दोलन मन्द पड़
गया। भले ही यह आन्दोलन तत्काल परिणति तक न पहुँच सका हो, किन्तु इस
आन्दोलन ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्त की पटकथा लिख दी।
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