यदि आपातकाल सम्बन्धी अधिकार प्राप्त नहीं होते
संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने संविधान में आपातकालीन उपबन्धों की आलोचना भी की है। उनका मानना था कि इससे संविधान का संघीय प्रभाव नष्ट होगा तथा केन्द्र सर्वशक्तिमान बन जाएगा। राज्यों की शक्तियाँ पूरी तरह से केन्द्रीय प्रबन्धन के हाथों में आ जाएँगी तथा राष्ट्रपति तानाशाह बन जाएगा। वहीं कुछ विद्वानों ने इसका बचाव भी किया है। अम्बेडकर ने कहा है कि “मैं पूर्ण रूप से इनकार नहीं करता कि इन अनुच्छेदों का दुरुपयोग नहीं होगा, लेकिन यह भारतीय लोकतन्त्र के लिए स्वास्थ्यवर्धक भी समय-समय पर सिद्ध होंगे। भारतीय संविधान द्वारा अगर राष्ट्रपति को संकटकालीन परिस्थितियों (आपातकाल) से सम्बन्धित अधिकार नहीं दिए होते तो देश में निम्नलिखित स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती थीं
1. अनुच्छेद 352 में बाहरी आक्रमण, युद्ध एवं सैनिक विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपात लगाने का प्रावधान है। अगर इन स्थितियों में यह अधिकार नहीं दिया गया होता तो देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है तथा भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
2. अनुच्छेद 356 में यह प्रावधान दिया गया है कि किसी राज्य में संवैधानिक तन्त्र के विफल हो जाने पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। अगर संविधान द्वारा राष्ट्रपति को यह अधिकार नहीं दिया गया होता तो उक्त राज्य में राजनैतिक अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिससे इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था, एकता एवं अखण्डता को हानि हो सकती है।
3. अनुच्छेद 360 में देश में वित्तीय संकट की स्थिति में राष्ट्रपति को वित्तीय आपात की घोषणा करने का अधिकार दिया गया है। अगर संविधान द्वारा राष्ट्रपति को यह अधिकार नहीं दिया जाता, तो देश में वित्तीय अराजकता उत्पन्न हो जाती जो देश के भुगतान सन्तुलन पर बुरा प्रभाव डालती। इन परिस्थितियों से वैश्विक स्तर पर देश की आर्थिक साख में गिरावट आती। परिणामतः अतः देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने की सम्भावना बनी रहती।
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