नवजागरण
भारत में 19वीं शताब्दी में एक ऐसी नवीन चेतना का उदय हुआ, जिसने देश के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया, इसी नवचेतना को हम ' नवजागरण' के नाम से पुकारते हैं। अतः 19वीं शताब्दी को भारतीय ● 'नवजागरण का काल कहा जाता है।
में भारत में नवजागरण का उदय
19वीं सदी में भारतीय समाज कुरीतियों में जकड़ा हुआ था। देश में महिलाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो चुकी थी। जनसाधारण वर्ग ब्राह्मणों और पुरोहितों के आडम्बरों से त्रस्त था। ईसाई मिशनरियों ने हिन्दू धर्म की खामियों को उजागर कर लोगों को अपने धर्म में शामिल करना शुरू कर दिया था। इसके फलस्वरूप भारत में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आन्दोलनों का जन्म हुआ। इन आन्दोलनों से भारतीयों के मन और मस्तिष्क में नवचेतना और नवस्फूर्ति का संचार हुआ, जिससे भारतीयों में सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक मूल्यों का नवीन उदय हुआ। इस नवचेतना को ही 'नवजागरण' या 'पुनर्जागरण' के नाम से जाना जाता है। नवजागरण को सुधार आन्दोलन भी कहते हैं।
भारत में नवजागरण के कारण
भारत में नवजागरण के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे . अंग्रेजी शासन के प्रभावस्वरूप सभी वर्गों में असन्तोष की भावना जागृत हो उठी थी।
• पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार-प्रसार से भारतीयों पर यूरोपीय विचारकों के स्वतन्त्रता, समानता, राष्ट्रीयता, लोकतन्त्र सम्बन्धी विचारों का प्रभाव पड़ा। सामाजिक व धार्मिक आन्दोलनों ने आत्मसम्मान की भावना का प्रसार किया।
साहित्य एवं समाचार पत्रों ने नए विचारों का प्रसार किया तथा लोगों में राष्ट्रीयता
की भावना जगाई। इस सन्दर्भ में 19वीं सदी के दो प्रमुख समाचार पत्रों के नाम इस
प्रकार हैं-टाइम्स ऑफ इण्डिया (1861 ई.) तथा अमृत बाजार पत्रिका (1868 ई.) ।
रेलवे तथा डाक-तार न केवल लोगों में सम्पर्क स्थापित हुआ, बल्कि राष्ट्रीयता
की भावना भी फैली।
• इस काल में यूरोप में भी अनेक सुधारवादी आन्दोलन चल रहे थे, उनका प्रभाव भी
भारत पर पड़ा। ब्रिटिश सरकार की भेदभावपूर्ण व दमनकारी नीतियों ने भी भारतीयों को विरोध
करने के लिए बाध्य किया।
• लॉर्ड मैकाले के प्रयास से भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ।
19वीं शताब्दी में भारत में संचार क्रान्ति का सूत्रपात्र हुआ एवं भारत में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया। यूरोपीय दार्शनिकों ने भारतीय संस्कृति, दर्शन और साहित्य को लेकर विभिन्न
प्रकार की खोज की। धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन
ब्रह्म समाज
ब्रह्म समाज की स्थापना 1828 ई. में राजा राममोहन राय ने की थी, इन्हें राष्ट्रीय 'नवजागरण का अग्रदूत' कहा जाता है।
• 'द परसेप्ट्स ऑफ जीसस' एवं 'द गाइड टू पीस एण्ड हैप्पीनेस' इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
• राजा राममोहन राय ने 1829 ई. में सती प्रथा का अन्त कराया।
संवाद कौमुदी (बांग्ला) तथा मिरातुल अखबार (फारसी) के माध्यम से इन्होंने सामाजिक कुरीतियों; जैसे- बाल विवाह, सती प्रथा, जाति प्रथा, बहु-विवाह जैसी सामाजिक तथा मूर्ति पूजा जैसी धार्मिक परम्पराओं का विरोध किया।
ब्रह्म समाज के सिद्धान्तों में ईश्वर की एकता तथा उसके निराकार स्वरूप पर बल दिया गया। इनके सिद्धान्त में अवतारवाद का खण्डन तथा धार्मिक आडम्बरों का निषेध करना शामिल है।
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