भारत छोड़ो आन्दोलन
भारत छोड़ो आन्दोलन या अगस्त क्रान्ति भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की अन्तिम बड़ी लड़ाई थी, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला कर रख दी।
क्रिप्स मिशन के खाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपने छले जाने का एहसास हुआ। इस समय जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई, 1942 को गाँधीजी ने कहा कि "अंग्रेजों भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।"
इस प्रकार कांग्रेस कार्य समिति ने वर्धा की अपनी बैठक में 4 जुलाई, 1942 को संघर्ष के गाँधीवादी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी।
भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण
भारत छोड़ो आन्दोलन के कई कारण थे, जो निम्नलिखित हैं . संवैधानिक गतिरोध को हल करने में क्रिप्स मिशन की असफलता ने संवैधानिक विकास के मुद्दे पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रुख को उजागर कर दिया तथा यह बात स्पष्ट हो गई कि भारतीयों की ज्यादा समय तक चुप्पी उनके भविष्य को ब्रिटेन के हाथों में सौंपने के समान होगी।
मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि तथा चावल, नमक इत्यादि आवश्यक वस्तुओं के अभाव में सरकार के विरुद्ध जनता में तीव्र असन्तोष था।
दक्षिण-पूर्वी एशिया में ब्रिटेन की पराजय तथा शक्तिशाली ब्रिटेन के पतन के समाचार ने असन्तोष को व्यक्त करने की इच्छाशक्ति भारतीयों में जगाई। • बर्मा और मलाया को खाली करने के ब्रिटिश सरकार की नीति असन्तोषपूर्ण थी।
इससे लोगों में विद्वेष की भावना जाग्रत हो गई। निराशा के कारण, जापानी आक्रमण का जनता द्वारा कोई प्रतिरोध न किए जाने की आशंका से राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओं को संघर्ष प्रारम्भ करना अपरिहार्य लगने लगा। .
भारत छोड़ो प्रस्ताव
वर्धा प्रस्ताव के निश्चय के अनुसार 7 अगस्त, 1942 को बम्बई (मुम्बई) के ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन आरम्भ हुआ। इस अधिवेशन में गहन विचार-विमर्श के पश्चात् 8 अगस्त को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया गया। इसमें ब्रिटिश शासन के तत्काल अन्त का आह्वान करते हुए देशव्यापी आन्दोलन प्रारम्भ करने की घोषणा की गई। इसे अगस्त क्रान्ति प्रस्ताव भी कहा जाता है। इस दौरान महात्मा गाँधी ने इसे अपने जीवन का अन्तिम आन्दोलन तथा स्वतन्त्रता के लिए अन्तिम अवसर बताते हुए देशवासियों को 'करो या मरो' का मन्त्र दिया।
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