: सविनय अवज्ञा आन्दोलन सविनय अवज्ञा का अर्थ है विनम्रतापूर्वक आज्ञा

सविनय अवज्ञा आन्दोलन सविनय अवज्ञा का अर्थ है विनम्रतापूर्वक आज्ञा

सविनय अवज्ञा आन्दोलन सविनय अवज्ञा का अर्थ है विनम्रतापूर्वक आज्ञा 

करना। सविनय अवज्ञा गाँधीजी के आन्दोलनों की विशेषता रही है। इसके अन्तर्गत विनम्रता तथा अहिंसक होकर सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। 1930 ई. में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया था। इसके लिए उन्होंने नमक सत्याग्रह की शुरूआत की। महात्मा गाँधी के द्वारा 12 मार्च, 1930 को ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह शुरू करने का निश्चय किया गया। उन्होंने 12 मार्च को साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दाण्डी के लिए पदयात्रा प्रारम्भ की। 6 अप्रैल को गाँधीजी ने नमक बनाकर कानून तोड़ा।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण

सविनय अवज्ञा प्रारम्भ करने के पीछे निम्नलिखित कारण थे, जो इस प्रकार हैं ब्रिटिश सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकृत कर भारतीयों के लिए संघर्ष के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं छोड़ा।

देश की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई थी। विश्वव्यापी आर्थिक महामन्दी से भारत भी अछूता नहीं रहा। इस कारण किसानों व मजदूरों की दशा अत्यधिक शोचनीय हो गई थी।

ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध 1928 ई. में गुजरात के बारदोली में सरदार पटेल

के नेतृत्व में एक सफल सत्याग्रह किया गया, जिसमें किसानों ने सरकार को

भूमि कर देने से मना कर दिया था। यह आन्दोलन सफल रहा, जिसने

कांग्रेस का मनोबल बढ़ाया। • मेरठ षड्यन्त्र केस के तहत 1929 ई. में सरकार ने कम्युनिस्ट नेताओं को गिरफ्तार कर उन पर केस, राजद्रोह का मुकदमा चलाया, जिस कारण लोगों में क्रोध की भावना फैल रही थी। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 1929 ई. में पारित पूर्ण स्वराज्य की मांग को ठुकरा दिया था। अत: इस परिस्थिति में आन्दोलन का मार्ग अपरिहार्य हो गया था।

ब्रिटिश सरकार डोमिनियन स्टेट्स देने तथा इसके लिए संविधान बनाने हेतु गोलमेज सम्मेलन के आयोजन से पीछे हट गई थी। परिणामस्वरूप देश का वातावरण तेजी से ब्रिटिश सरकार विरोधी होता गया। गाँधीजी ने इस अवसर का लाभ उठाकर इस विरोध को सविनय अवज्ञा आन्दोलन की ओर मोड़ दिया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ (1930-31 ई.)

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ 12 मार्च, 1930 को प्रसिद्ध दाण्डी मार्च के साथ आरम्भ हुआ। इस कार्यक्रम के अनुसार गाँधीजी को साबरमती आश्रम से 240 किमी दूर स्थित दाण्डी समुद्र तट पर नमक कानून का उल्लंघन करना था। 6 अप्रैल, 1930 को गाँधीजी ने दाण्डी पहुँचकर समुद्र तट से थोड़ा सा नमक उठाकर शान्तिपूर्ण और अहिंसात्मक ढंग से नमक कानून का उल्लंघन किया।

इस आन्दोलन में हजारों लोगों ने भाग लिया। इस आन्दोलन को समाप्त करने के लिए अंग्रेजों के द्वारा दमन चक्र चलाया गया। कांग्रेस को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया तथा 15 मई को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी बीच तत्कालीन वायसराय एवं गाँधीजी के मध्य समझौता हुआ समझौते के अनुसार गाँधीजी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना एवं आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार 1931 ई. में सविनय अवज्ञा

आन्दोलन को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया। आन्दोलन की प्रगति (1930-33 ई.) तथा समाप्ति

लन्दन में 7 सितम्बर, 1931 से दिसम्बर, 1931 तक आयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधीजी ने भाग लिया। सरकार द्वारा सम्मेलन में भारतीयों की स्वतन्त्रता की माँग पर किसी भी

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