काकोरी काण्ड
1924 ई. में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना हुई। इसके मुख्य कार्यकर्ता सचीन्द्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल, योगेशचन्द्र चटर्जी, अशफाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह इत्यादि थे।
अपनी गतिविधियों को संचालित करने के लिए क्रान्तिकारियों को धन की आवश्यकता थी। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए क्रान्तिकारियों ने 9 अगस्त, 1925 को सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली ट्रेन में रखे सरकारी खजाने को लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर लूट लिया। इतिहास में इस घटना को काकोरी ट्रेन लूट काण्ड के नाम से जाना जाता है।
काकोरी केस के आरोप में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह एवं राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी की सजा दी गयी जबकि सचीन्द्रनाथ सान्याल को उम्र कैद की सजा मिली।
(ख) सेन्ट्रल एसेम्बली (केन्द्रीय विधान सभा) पर बम प्रहार पुलिस के बढ़ते दमन चक्र से लोगों में यह भावना बैठने लगी कि क्रान्तिकारी अपनी गतिविधियों को अन्जाम देकर भाग निकलते हैं तथा सामान्य जनता को पुलिस के दमन का शिकार होना पड़ता है। इस भावना से ग्रसित जनता में क्रान्तिकारियों के प्रति विश्वास जगाने के लिए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन द्वारा पब्लिक सेफ्टी बिल के खिलाफ सरकार का विरोध करने के लिए अपने दो सदस्यों भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त को दिल्ली भेजा। भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में केन्द्रीय विधानसभा भवन में 8 अप्रैल, 1929 को खाली बेंचों पर बम फेंके, नारे लगाए एवं अपनी गिरफ्तारी दी। इनका बम फेंकने का मुख्य उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था, बल्कि वे केवल फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों के. उस कथन को सत्य करना चाहते थे कि गूंगों एवं बधिरों को सुनाने के लिए अत्यधिक शोर की आवश्यकता पड़ती है। इसी घटना को सेन्ट्रल एसेम्बली बम प्रहार के नाम जाना जाता है।
(ग) लाहौर काण्ड इसे साण्डर्स हत्या काण्ड के नाम से भी जाना जाता है। • लाहौर में 1926 ई. में सरदार भगत सिंह, डॉ. सत्यपाल, भगवतीचरण वोहरा और यशपाल ने क्रान्तिकारी गतिविधियों को संचालित करने के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। इससे पूर्व काकोरी लूट काण्ड के कारण हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियाँ मन्द पड़ गई। थीं। 9 और 10 सितम्बर, 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में हुई बैठक में क्रान्तिकारियों ने देश में समाजवाद की स्थापना करने का निर्णय लिया और अपने संगठन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट
रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया। चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि ने इसी संगठन में रहकर अपनी गतिविधियाँ जारी रखीं। 17 दिसम्बर, 1928 को
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