उत्तर स्वामी दयानन्द सरस्वती
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 1824 ई. में मौखी जिले (गुजरात) में हुआ था, इनका बचपन का नाम मभूलशंकर था। मुलशंकर 21 वर्ष की अवस्था में (1845 ई.) में घर से भाग निकले। स्वामी पृर्णानन्द के द्वारा 1848 ई. में इन्हें दयानन्द सरस्वती नाम दिया गया। स्वामी दयानन्द की मुलाकात मथुरा में स्वामी बिरजानन्द से हुई तथा स्वामी विवेकानन्द के द्वारा इन्होंने इन्हें अपना गुरु माना। इन्होने अपने गुरु से प्रतिज्ञा की कि मैं पूरे भारत में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति को प्रतिष्ठित करूँगा।
1868 ई. में इन्होने अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए आगरा में प्राखण्ड-खण्डिनी पताका फहराई तथा 1875 ई. में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना कीौ। 1877 ई. में इन्होंने अपना मुख्यालय लाहौर में बनाया।
आर्य समाज आन्दोलन भारत में बढ़ते पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया था। आर्य समाज ने 20वीं सदी के धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पुनर्जागरण में दयानन्द सरस्वती का योगदान युनर्जागरण में दयानन्द सरस्वती का योगदान निम्नलिखित है.., 1, इनका उद्देश्य वेदों की सर्वोच्चता, पुनर्जन्म तथा कर्म के सिद्धान्त में विश्वास की भावना आदि को प्रतिस्थापित करना था। 2. इन्होंने आर्य समाज के माध्यम से हिन्दू धर्म एवं समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। 3. इन्होंने बहुदेववाद, मूर्तिपूजा, धार्मिक कर्मकाण्ड तथा पुरोहित आधिपत्य को समाप्त करने का उद्देश्य रखा। 4. जातिप्रथा, अज्ञानता, बाल विवाह, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा आदि की आलोचना की गई तथा विदेश यात्रा, विधवा विवाह, नारी शिक्षा का समर्थन किया गया। 5. इनका सर्वाधिक प्रमुख कार्य शुद्धीकमण और घर्म परिवर्तन द्वारा अन्य व्यक्तियों को हिन्दू समाज में पुन: शामिल करना .भी था।
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