: सुभाषचन्द्र बोस

सुभाषचन्द्र बोस

सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक जिले मे हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक अ्रसिद्ध बकील थे। बोस की आरभ्भिक शिक्षा मिशनरी स्कूल में हुई थी। 1913 ई. मे मैट्रिक पास करने के पश्चात्‌ वे आगे की पढ़ाई के लिए इग्लैण्ड गए। इग्लैण्ड मे उन्होने इण्डियन सिविल सेवा की परीक्षा मे चौथा स्थान प्राप्त किया, किन्तु राष्ट्र प्रेम की भावना एवं देश सेवा के जज्जे के कारण उन्होंने आईसीएस की सेवा से त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने हेतु भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस मे शामिल हो गए। इन्होने असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1923-24 ई. मे देशबन्धु चितरंजन दास के नेतृत्व मे मठित कलकत्ता नगर निगम के अधिशासी अधिकारी बने। 1938 ई, में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। 1939 ई. में इन्होने पुनः इस पद के लिए खड़े होने का निर्णय लिया, किन्तु गाँधीजी, आचार्य कृपलानी, सरदार यटेल आदि ने उनका विरोध किया ठथा गाँधीजी ने पट्टाभि सीतारमैया को अपना उम्मीदवार बनाया। चुनाव में सुभाषचन्द्र बोस जीत गए। गाँधीजी ने पट्टाभि सीतारमैया को हार को अपनी हार बताया। विवाद बढ़ने पर अन्ततः सुभाषचन्द्र बोस ने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया तथा एक नए दल फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। सुभाष बोस के क्रान्तिकारी विचारों के कारण 1940 ई. मे उन्हे ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सुरक्षा कानून के तहत नजरबन्द कर दिया। 17 जनवरी, 1941 की रात वे नजरबन्दी से भागने में कामयाब रहे तथा अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी गए तथा वहाँ पहुँचकर उन्होंने हिटलर से भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन हेतु मदद माँगी। इसी बीच सिंगापुर पर जापानियों का कब्जा हो गया तथा 40,000 ब्रिटिश सेना के सिपाही जापानियों ने बन्दी बनाए, जिनके कप्तान मोहन सिंह थे। रासबिहारी बोस के प्रयासों से इसे आजाद हिन्द फौज का नाम दिया गया तथा 1943 ई. में इसको कमान सुभाषचन्द्र बोस को सोप दो गई। सिंगापुर मे ही 21 अक्टूबर, 1943 को स्वतन्त्र भारत की प्रथम अस्थायी सरकार गठित की गई तथा सुभाषचन्द्र बोस इस सरकार के प्रधानमन्त्री व मुख्य सेनापति बने। जापान सरकार ने अण्डमान व निकोबार को जीतने के पश्चात्‌ इन्हे अस्थायी सरकार को सौंप दिया। बर्मा की राजधानों रगून में अस्थायी सरकार की राजधानी व आजाद हिन्द सेना का मुख्यालय स्थापित किया गया। 4 फरवरी, 1944 को सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द सेना रंगून से अराकान की पहाड़ियों की ओर बढ़ी और ब्रिटिश सेना को पराजित कर दिया। 7 अप्रैल, 1944 को आजाद हिन्द फौज मे इम्फाल पर आक्रमण किया, किन्तु ससाधनो की कमी व भारी वर्षा के कारण यह आक्रमण विफल रहा और इसी बीच एक वायु दुर्घटना मे नेताजी की मृत्यु हो गई और आजाद हिन्द सेना के सिपाहियो को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया। आजाद हिन्द सेना हालाँकि अपने तात्कालिक लक्ष्य अथांत्‌ भारत को सैन्य शक्ति से स्वतन्त्र कराने में असफल रही, किन्तु इसने भारतीयों में अदम्य ऊर्जा, साहस व देशभक्ति का संचार किया, जिससे राष्ट्रीय आन्दोलन में युवाओं ने पूरे मनोयोग से भाग लिया तथा आन्दोलब को परिणति तक पहुंचावा। 1942 ई. की क्रान्ति इसका उदाहरण हैं। आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों को सम्बोधित करते हुए सुभाष मे कहा, “हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। इनका प्रसिद्ध मारा था, “तुप मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा।'

Post a Comment

0 Comments