: दाण्डी मार्च

दाण्डी मार्च

दाण्डी मार्च » सविनय अवज्ञा के तहत महात्मा गाँधी ने नमक कानून की तोड़ने का निर्णय लिया। इसके लिए १2 मार्च, 1930 को उन्होने साबरमती से अपने 78 समर्थको के साथ दाण्डी यात्रा प्रारम्भ की » 24 दिनो में 240 किमी की यात्रा के पश्चात्‌ 5 अप्रैल को वे दाण्डी पहुँचे तथा 6 ऑल, 1930 को उन्होने प्रात: समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून का उल्लघन किया तथा सत्याग्रह की शुरूआत की। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत देशभर के लोगो से नमक सत्याग्रह मे भाग लेने का आह्वान किया गया। सविनय अवज्ला आन्दोलन का प्रसार « देशभर मे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रसार स्वरूप नमक कानून भंग किया गया। विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार किया गया तथा शराब की दुकानो पर महिलाओ ने बड़ी सख्या मे प्रदर्शन किए। « आन्दोलन का प्रसार होने पर सरकार ने तीव्र दमन चक्र चलाया। « 5 मार्च, 1931 को गाँघी-इरविन समझौता हुआ, जिसके तहत सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित हो गया। » लॉर्ड इरविन के पश्चात्‌ लॉर्ड विलिंगटन भारत के वायसराय बनकर आए, जिन्होने गॉंधी-इरविन समझौते का उललघन करना प्रारम्भ कर दिया, जिससे यह समझौता समाप्त हो गया। फलत: 3 जनवरी, 1932 को पुनः आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। सरकार ने गाँधीजी, सरदार पटेल आदि बडे नेताओ को गिरफ्तार कर लिया, जिस कारण अन्ततः 14 जुलाई, 1934 को आन्दोलन वापस ले लिया गया। प्रथम गोलमेज सम्मेलन, 1930 ब्रिटिश सरकार ने 12 नवम्बर, 1930 को भारतीय नेताओ और सरकारी प्रवक्‍ताओ के साथ अ्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करना था। गाँधी-इरविन समझौता, 1931 प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद ब्रिटिश सरकार काग्रेस से बातचीत के लिए तैयार हो गई, ताकि काग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो जाए। साथ ही सरकार ने अहिंसक रहने वाले राजनीतिक बन्दियो और गाँधीजी को रिहा कर दिया। तेज बहादुर सप्रू एवं जयकर के प्रयासो से महात्मा गाँधी एवं लॉर्ड इरविन के बीच 17 फरवरी, 1931 से दिल्ली मे वार्ता शुरू हुई आखिरकार 5 मार्च, 1931 को गाँधी तथा इरविन ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को गाँधी इरविन समझौते के नाम से जाना जाता है। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, 1981 7 सितम्बर, 1931 को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। काग्रेस की ओर से महात्मा गाँधी ने इस सम्मेलन मे भाग लिया। सम्मेलन में भारतीय सघ की रूपरेखा पर विचार विमर्श किया गया। महात्मा गाँधी ने काग्रेस को राष्ट्रीय सस्था सिद्ध करने का प्रयास किया। मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में मुहम्मद अली जिन्‍ना ने साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली की माँग उठाई। 1 दिसम्बर, 1931 को बिना किसी ठोस निर्णय के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन समाप्त हो गया। कम्यूनल अवार्ड, 1982 16 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने भारत की साम्प्रदायिक समस्या के विषय में एक निर्णय दिया। इस निर्णय को कम्यूनल अवार्ड, साम्प्रदायिक यंचाट, साम्प्रदायिक निर्णय जैसे नामो से जाना जाता है। घूना समझौता, 1932 साम्प्रदायिक पंचाट की घोषणा के समय गाँघीजी यरवदा जेल में थे। “साम्प्रदायिक चंचाट' का विरोध करते हुए उन्होने 20 सितम्बर, 1932 को जेल में ही आमरण अनशन कर दिया। अनशन के कारण महात्मा गॉधी का स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टण्डन, राजगोपालाचारी आदि के प्रयासो से गाँधीजी और अम्बेडकर के मध्य 26 सितम्बर, 1932 को एक समझौता हुआ, जिसे पूना पैक्ट या पूना समझौता के नाम से जाना जाता है। तूतीय गोलमेज सम्मेलन, 1932 37 नवम्बर, 1932 को लन्‍्दन में तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन मे कांग्रेस के किसी सदस्य ने भाग नही लिया। इस सम्मेलन में प्रथम और द्वितीय गोलमेज सम्मेलनो के प्रस्तावों और रिपोर्टों को ही अन्तिम रूप दिया गया। इस सम्मेलन में लिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णयो के आधार पर ही भारत शासन अधिनियम, 1935 पारित किया गया। मार्च » सविनय अवज्ञा के तहत महात्मा गाँधी ने नमक कानून की तोड़ने का निर्णय लिया। इसके लिए १2 मार्च, 1930 को उन्होने साबरमती से अपने 78 समर्थको के साथ दाण्डी यात्रा प्रारम्भ की » 24 दिनो में 240 किमी की यात्रा के पश्चात्‌ 5 अप्रैल को वे दाण्डी पहुँचे तथा 6 ऑल, 1930 को उन्होने प्रात: समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून का उल्लघन किया तथा सत्याग्रह की शुरूआत की। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत देशभर के लोगो से नमक सत्याग्रह मे भाग लेने का आह्वान किया गया। सविनय अवज्ला आन्दोलन का प्रसार « देशभर मे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रसार स्वरूप नमक कानून भंग किया गया। विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार किया गया तथा शराब की दुकानो पर महिलाओ ने बड़ी सख्या मे प्रदर्शन किए। « आन्दोलन का प्रसार होने पर सरकार ने तीव्र दमन चक्र चलाया। « 5 मार्च, 1931 को गाँघी-इरविन समझौता हुआ, जिसके तहत सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित हो गया। » लॉर्ड इरविन के पश्चात्‌ लॉर्ड विलिंगटन भारत के वायसराय बनकर आए, जिन्होने गॉंधी-इरविन समझौते का उललघन करना प्रारम्भ कर दिया, जिससे यह समझौता समाप्त हो गया। फलत: 3 जनवरी, 1932 को पुनः आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। सरकार ने गाँधीजी, सरदार पटेल आदि बडे नेताओ को गिरफ्तार कर लिया, जिस कारण अन्ततः 14 जुलाई, 1934 को आन्दोलन वापस ले लिया गया। प्रथम गोलमेज सम्मेलन, 1930 ब्रिटिश सरकार ने 12 नवम्बर, 1930 को भारतीय नेताओ और सरकारी प्रवक्‍ताओ के साथ अ्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करना था। गाँधी-इरविन समझौता, 1931 प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद ब्रिटिश सरकार काग्रेस से बातचीत के लिए तैयार हो गई, ताकि काग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो जाए। साथ ही सरकार ने अहिंसक रहने वाले राजनीतिक बन्दियो और गाँधीजी को रिहा कर दिया। तेज बहादुर सप्रू एवं जयकर के प्रयासो से महात्मा गाँधी एवं लॉर्ड इरविन के बीच 17 फरवरी, 1931 से दिल्ली मे वार्ता शुरू हुई आखिरकार 5 मार्च, 1931 को गाँधी तथा इरविन ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को गाँधी इरविन समझौते के नाम से जाना जाता है। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, 1981 7 सितम्बर, 1931 को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। काग्रेस की ओर से महात्मा गाँधी ने इस सम्मेलन मे भाग लिया। सम्मेलन में भारतीय सघ की रूपरेखा पर विचार विमर्श किया गया। महात्मा गाँधी ने काग्रेस को राष्ट्रीय सस्था सिद्ध करने का प्रयास किया। मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में मुहम्मद अली जिन्‍ना ने साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली की माँग उठाई। 1 दिसम्बर, 1931 को बिना किसी ठोस निर्णय के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन समाप्त हो गया। कम्यूनल अवार्ड, 1982 16 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने भारत की साम्प्रदायिक समस्या के विषय में एक निर्णय दिया। इस निर्णय को कम्यूनल अवार्ड, साम्प्रदायिक यंचाट, साम्प्रदायिक निर्णय जैसे नामो से जाना जाता है। घूना समझौता, 1932 साम्प्रदायिक पंचाट की घोषणा के समय गाँघीजी यरवदा जेल में थे। “साम्प्रदायिक चंचाट' का विरोध करते हुए उन्होने 20 सितम्बर, 1932 को जेल में ही आमरण अनशन कर दिया। अनशन के कारण महात्मा गॉधी का स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टण्डन, राजगोपालाचारी आदि के प्रयासो से गाँधीजी और अम्बेडकर के मध्य 26 सितम्बर, 1932 को एक समझौता हुआ, जिसे पूना पैक्ट या पूना समझौता के नाम से जाना जाता है। तूतीय गोलमेज सम्मेलन, 1932 37 नवम्बर, 1932 को लन्‍्दन में तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन मे कांग्रेस के किसी सदस्य ने भाग नही लिया। इस सम्मेलन में प्रथम और द्वितीय गोलमेज सम्मेलनो के प्रस्तावों और रिपोर्टों को ही अन्तिम रूप दिया गया। इस सम्मेलन में लिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णयो के आधार पर ही भारत शासन अधिनियम, 1935 पारित किया गया।

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