संसंजक बलों के आधार पर पृष्ठ तनाव की व्याख्या वैज्ञानिक लाप्लास ने की थी। मिद्धान के पदार्थ के विभिन्न अणु एक-दूसरे पर आकर्षण बल आरोपित करते हैं, जिनका आण्विक परास 10 ? मीटर कोरि किसी एक अणु को केन्द्र मानकर 10 ? मीटर से खींचे गये गोले के अन्दर स्थित सभी पर आकर्षण बल आरोपित करते हैं। इन आकर्षण बलों के प्रत्येक दिशा में होने के कारण इनका नेट बल शून्य हो गोले के केद्ध पर स्थित अणु पर द्रव के अन्य अणुओं के कारण लगने पाला नेट संसंजक बल शून्य होता है। किसी द्रव के स्वतंत्र पृष्ठ (10० 10* मीटर ) पर कार्य करने वाले तनाव को समझने के लिए एक बर्तन में भरे देव में भिन्न-भिन्न स्थितियों 4, तथा /0 पर स्थित अणुओं और चारों ओर खींचे गये आण्विक सक्रियता के गोलों पर विचार करते 3) हैं (चित्र 19.5)। A तथा BO केन्द्र मानकर खींचे गये आण्विक
सक्रियता के गोले पूर्णतः द्रव के अन्दर होने के कारण, इन स्थितियों पर स्थित अणुओं पर द्रव के अन्य अणुओं द्वारा लगने वाला नेट आकर्षण बल ' शून्य है। अतः द्रव के अन्दर किसी अणु को स्थिति 4 से स्थिति 9 तक आने में किया गया कार्य शून्य है। Cae , गये गोले का कुछ ऊपरी भाग द्रव से बाहर है तथा /) को केन्द्र मानकर खींचे गये गोले का ऊपरी आधा भाग है। अतः स्थितियों Ca D पर स्थित अणुओं पर द्रव के अन्य अणुओं के द्वारा एक नेट आकर्षण बल ऊर्ध्वाधर Hyg लगता है तथा द्रव में स्थिति 8 से स्थिति D तक ऊपर आते हुए किसी अणु पर अन्य अणुओं द्वारा आरोपित ओर दिष्ट आकर्षण बल का मान बढ़ता जाता है तथा अणु की स्थिति D पर यह बल अधिकतम होता है। चित्र 1951, है कि द्रव के उच्चतम तल PO तथा अन्य क्षितिज तल बीच की दूरी आण्विक परास 10° बराबर है। तलों PO तया RS के बीच द्रव की ad (layer) द्रव का स्वतंत्र पृष्ठ कहते हैं। जब द्रव का कोई ayy अन्दर नीचे से ऊपर स्वतंत्र पृष्ठ में आता है, तो तल RS तक आने पर संसंजक बल के विरुद्ध किया गया कार्य (क्योंकि अणु पर लगने वाला नेट संसंजक बल शून्य है), किन्तु तल RS से ऊपर जाने पर, अणु पर लगने वाले संसंजक बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है, यह कार्य उस अणु में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो अतः स्पष्ट है कि द्रव के स्वतंत्र पृष्ठ में स्थित अणुओं की स्थितिज ऊर्जा द्रव के भीतर स्थित अणुओं की स्थितिज होती है। इन अणुओं की उपस्थिति के कारण, द्रव के स्वतंत्र पृष्ठ की स्थितिज ऊर्जा अधिक होती है। इस पृष्ठ की अधिकता, पृष्ठ में उपस्थित अणुओं की संख्या के बढ़ने पर बढ़ती है तथा पृष्ठ में उपस्थित अणुओं की संख्या पृ्ठे | के बढ़ने पर बढ़ती है। अत: व्रव के स्वतंत्र पृष्ठ की स्थितिज ऊर्जा की अधिकता पृष्ठ के क्षेत्रफल के बढ़ने पर किसी भी निकाय के स्थायी साम्यावस्था (stable equilibrium) % होने के लिए इसकी स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होगी अत: द्रव पृष्ठ स्थायी साम्यावस्था प्राप्त करने के लिए, अपनी स्थितिज ऊर्जा को न्यूनतम करने तथा इस कारण पृष्ठ क्षेत्रफल को न्यूनतम सम्भव करने का प्रयास करता है। अतः द्रव पृष्ठ एक तनी हुई प्रत्यास्थ झिल्ली की भाँति | करता है। द्रव पृष्ठ के इस व्यवहार को पृष्ठ तनाव कहते हैं। आण्विक सिद्धान्त पर यही पृष्ठ तनाव की द्रव की पृष्ठ ऊर्जा (Surface energy of 1५००)--द्रव पृष्ठ के vats क्षेत्रफल की स्थितिज ऊर्जा को द्रव ढी (* कहते हैं। पृष्ठ ऊर्जा का विमीय सूत्र (MLT] तथा मात्रक जूल/मीटर” है।
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